मेरी शादी को सिर्फ छह महीने हुए हैं, अभी पूरी तरह से लाल चूड़ा भी बाँहों से नहीं उतरा था. मैं शादी से पहले से ही सेक्स स्टोरीज़ पढ़ती आ रही हूँ. मैं सरकारी स्कूल में एक कंप्यूटर टीचर हूँ. मेरी नौकरी घर से सिर्फ पांच किलोमीटर की दूरी पर है. मैं दिखने में बेहद मस्त हूँ, जो भी मुझे देखता है उसका दिल मुझे चोदने का ज़रूर करता है. शादी से पहले मेरे काफी अफेयर रहे हैं, जिनके साथ मैंने बिस्तर भी सांझे किए थे, उनके साथ लेट-लेट कर मैं पूरी चुदक्कड़ बन गई थी. मेरे पति बिजली बोर्ड में सरकारी नौकरी करते हैं. उनकी पोस्टिंग दूसरे शहर में है. पहली पोस्टिंग ही दूसरे शहर में हुई. मेरे पति देखने में बहुत स्मार्ट हैं, हैण्डसम हैं, पर उनका लंड बहुत छोटा है. सुहागसेज पर उनके लंड को देखा तो दिल का सारा चाव खत्म होने लगा. कहाँ पहले मैं बहुत घबराई हुई थी कि कहीं उनको मालूम न चले कि मैं पहले से खेली-खाई हुई लड़की हूँ.
मुझे मेरी सहेली ने कुछ नुक्ते सिखाए थे. मैं घबराई हुई सी में कमरे में बैठी थी, पति देव कमरे में आए, मुझे देखा थोड़ा मुस्कुराए और दरवाज़ा लॉक करके वाशरूम गए. वहाँ से चेंज करके मेरे पास आए और लाईट बंद करके मेरे करीब आए और बाँहों में भरकर मुझे चूमने लगे. एक-एक करके मेरे कपड़े उतारने लगे, देखते ही देखते में टू-पीस में रह गई थी, लेकिन उन्होंने अपना कोई कपड़ा नहीं उतारा. मुझे नंगी करके मेरे मम्मे दबाने लगे, निप्पल चूसने लगे.
मुझे मेरी सहेली ने कुछ नुक्ते सिखाए थे. मैं घबराई हुई सी में कमरे में बैठी थी, पति देव कमरे में आए, मुझे देखा थोड़ा मुस्कुराए और दरवाज़ा लॉक करके वाशरूम गए. वहाँ से चेंज करके मेरे पास आए और लाईट बंद करके मेरे करीब आए और बाँहों में भरकर मुझे चूमने लगे. एक-एक करके मेरे कपड़े उतारने लगे, देखते ही देखते में टू-पीस में रह गई थी, लेकिन उन्होंने अपना कोई कपड़ा नहीं उतारा. मुझे नंगी करके मेरे मम्मे दबाने लगे, निप्पल चूसने लगे.
मैं डर रही थी कि जिस तरह वो मेरे जिस्म से खेल रहे हैं, वो मंजे हुए खिलाड़ी दिख रहे थे. मेरा शरीर कातिलाना है, फिर उनके होंठ मेरी चूत के होंठ चूसने लगे, मैं पागल होने लगी, मैं पूरी गर्म होकर हाँफने लगी.
मुश्किल से खुद को रोका था दिल चाहता था कि कोई लंड मेरी चूत कि गहराई नापे..! मैंने पाँव से उनके लंड को मसला, पर माप नहीं सकी कि कैसा होगा..! वो मेरी चूत चूसते ही जा रहे थे. आखिर मेरे सिले होंठ खुले- बस भी करो जानू… क्यूँ तड़पा रहे हैं..! मुझे ना चाहते हुए भी यह कहना पड़ा. अब वो अपना अंडरवियर खिसका कर मेरे ऊपर आए. मैंने जाँघें खोल डालीं, अपनी सांसें खींच लीं, चूत को सिकोड़ लिया. उन्होंने खुद को ऊपर से नंगा नहीं किया था. मैं चाहती थी कि जिस्म से जिस्म रगड़े. उससे चुदाई का मजा दुगुना होता है. उन्होंने लंड डालने की कोशिश की, लेकिन घुस नहीं पाया. दूसरी बार मैंने चूत थोड़ी ढीली की, तो लंड घुस गया. मेरी चूत ने महसूस किया, इतना छोटा सा टुन्नू सा लंड कि अगर में चूत न सिकोड़ती पता भी न चलता.मैंने उनकी टी-शर्ट खींच दी. उनके जिस्म पर बाल बहुत कम थे. मैं अभी तक जितने लड़कों के साथ लेटी थी सभी के जिस्म पर मर्दाना निशानी बाल थे. उनकी छाती बहुत नर्म थी, शायद इसी लिए वो कपड़े नहीं उतार रहे थे. लेकिन मैं एक नंबर की चुदक्कड़ रही थी और जिस अंदाज़ में मेरे पति मुझे गर्म कर रहे थे मैं बेकाबू होने लगी थी. मैंने फुद्दी ढीली कर दी और उसका लंड मेरी फुद्दी में था और उन्होंने मेरे मम्मे घोड़ी की लगाम की तरह पकड़ कर गाड़ी चालू की, अभी मुझे मजा आने ही लगा था कि उसका पानी निकल गया और वो मुझ पर लेट कर हाँफने लगा था. मैं प्यासी थी, पूरी गर्म थी. सोचा था कि आज पहली रात है, आज कहाँ वो रुकने वाला है, पर वो उठा कर कपड़े पहनने लगा और मैंने पास पड़ी चद्दर खुद पर खींच ली और चुपचाप लेटी रही. उसने मुझे गुड-नाईट कही और लंड सिकोड़ कर सो गया.
मैं झेलती रही, तड़प कर उठी… बाथरूम में गई. पानी अपने ऊपर डाला अपने दाने को रगड़-रगड़ कर खुद की आग खुद ही बुझाई. अब यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. कुछ दिनों बाद सासू माँ, ससुर जी मेरे जेठ के पास वापस ऑस्ट्रेलिया चले गए और मेरी भी छुट्टियाँ खत्म हो गईं. यह भी अपने दफ्तर वापस ज्वाइन हो गए. अब घर में सिर्फ हम मियां-बीवी ही रह गए थे. मेरे पति ट्रेन से पास बनवा कर अप-डाउन करते थे. कभी-कभी वहीं रुक जाते. रात को मैं कभी अकेली न परेशान होऊँ सो मेरी वजह से इन्होंने ऊपर वाला पोर्शन किराए पर दे दिया. उनकी सीढ़ियाँ बाहर से निकली हुई थीं. किराएदार की बेटी हॉस्टल में पढ़ती थी. बेटा यहीं कॉलेज में पढ़ता था. वो मियां-बीवी भी नौकरी वाले थे. एक दिन मेरे पति सुबह-सुबह घर आए. सीजन की वजह से काम बहुत था, मैं तब स्कूल के लिए तैयार हो रही थी. उनके साथ एक बेहद बलशाली बंदा आया था. उन्होंने उसे मुझसे मिलवाया- यह मेरी मौसी का लड़का है, किसी काम के लिए हमारे शहर में आया है, कुछ दिन रुकेगा!
उसने मुझे बहुत गौर से देखा. वह काफी आकर्षक मर्द था. पति बाथरूम नहाने गए वो बाहर सोफे पर बैठा था.
मैं चाय बना रही थी गर्मी की वजह से मैंने चुनरी उतार रखी थी. मैंने उसको झुक कर चाय दी, उसकी नज़र मेरे मम्मों पर थी. उसके चेहरे पर कमीनी मुस्कान थी. मेरी मुस्कराहट में भी कुछ छुपा था. मैंने पति देव को आवाज दी- देखो कुलचे मंगवा लेना… दोपहर का खाना आकर बना दूँगी! पति बोले- कोई बात नहीं.. तुम टेंशन मत लो.. जाओ..जाओ, मुझे भी काम है, यह घर पर ही रहेगा!
मैं चली गई, उसकी नज़र अब तक मेरी कमीनी सोच में बसी थी. मेरा मन स्कूल में लग नहीं रहा था. उसका चेहरा, उसका बलशाली शरीर.. उसकी नज़र, जिसने मुझे छलनी-छलनी किया था, आह.. चूत में सनसनी हो रही थी. मैं छुट्टी लेकर स्कूल से घर लौट आई. मैंने सोचा पति की गैर-मौजूदगी में उसको अपने हुश्न के जाल में फंसा लूँगी. मैंने देखा सभी दरवाज़े लॉक थे, मैं मायूस हो गई, मुझे लगा कि अकेले छोड़ने के बजाए वे उसको साथ ले गए. दूसरी चाभी पर्स से निकाल कर दरवाज़ा खोला और अन्दर गई. रूम का दरवाज़ा भी बंद दिखा, मेरा माथा ठनका कहीं दोनों घर में ही काल-गर्ल तो लेकर नहीं आए हैं. अन्दर की आवाजें सुन कर मुझे यकीन हो गया कि अन्दर बैंड बजाया जा रहा है. मैं जल्दी से पिछवाड़े में गई, उधर खिड़की से झाँक कर देखा तो मेरे होश उड़ने लगे. उधर कोई लड़की नहीं थी, मेरे पति ही लड़की का फर्ज़ अदा कर रहे थे. मेरी ब्रा-पैंटी पहने वे ज़मीन पर घुटनों के बल बैठे अपने आशिक का लंड मजे से अपनी गाण्ड में ले रहे थे. उसका लंड देख मैं पति के गाण्ड मरवाने की सोचने की बजाए उनके साथी के लंड को देख कर उसके साथ लेटने के बारे में सोचने लगी. ‘साली छिनाल रंडी… चूस मेरा लंड.. नहीं तो तेरी बीवी को चोद दूँगा!’ वो पति को बालों से पकड़ लंड चुसवा रहा था. ‘
जानू, उसके बारे में बाद में सोचना… अपनी इस रंडी की तरफ ध्यान दे..!’ ‘साली तेरी ऐसी बातों की से वजह से इतनी दूर से तुझे चोदने आया हूँ..! कसम से तेरी बीवी आग है आग.. उस पर हाथ सेंकने का दिल है!’ वो मेरे पति की पैंटी उतार कर उसकी गाण्ड सहलाने लगा. ‘चूम मेरी गाण्ड..!’ उसने चूतड़ फैलाए, उसकी चिकनी गाण्ड थी, एक बार भी छेद नहीं खुला था. ‘क्या गाण्ड है तेरी…!’ यह सब देखते-देखते मेरी फुद्दी पानी छोड़ने लगी, मेरा एक हाथ सलवार में था. मेरा पति गांडू निकला मुझे बड़ा दुःख था, पर मैंने सोच लिया था कि अब सारी शर्म उतार फेंकनी ही है. मैं वासना की आग में जल रही थी. उसका लंड देख-देख कर मेरा दिमाग खराब होने लगा. जब उसने मेरे पति के छेद पर लंड रखा, मेरी उंगली खुद की फुद्दी में घुस गई. उसने अन्दर डाला पति सिसक उठा, इधर मेरा भी बुरा हाल था, एक बार तो दिल किया कि दरवाज़ा खोल अन्दर चली जाऊँ, लेकिन अन्दर से दरवाज़ा बंद था. मेरी सलवार का नाड़ा मेरे हाथ को ठीक से चलने नहीं दे रहा था. मैंने नाड़ा खोल दिया, सलवार नीचे गिर गई और अब मैं एक हाथ अपनी गाण्ड पर फेर रही थी, दूसरे हाथ से फुद्दी में उंगली डाल रही थी. अन्दर मेरे पति गाण्ड मरवा रहे थे, मेरा दिल, दिमाग, ध्यान… सब कुछ अन्दर घुस रहे लंड पर था. तभी किसी ने पीछे से आकर मेरी चिकनी गाण्ड पर हाथ फेरा.
मैं वासना के नशे में भूल गई कि मैं पोर्च की गली में घर के पिछवाड़े में अपना पिछवाड़ा नंगा करके खड़ी हूँ. बस इतना था कि गेट मैंने बंद किया हुआ था. लेकिन ऊपर रह रहे किरायेदारों का मेरे दिमाग से निकल गया था. नया-नया पोर्शन किराए पर दिया था. ‘बहुत क़यामत दिख रही हो मेरी सपनों की रानी.. मेरी जान सीमा..!’
यह हमारे किरायेदार का बेटा रचित था. ‘भाभी क्या देख रही हो.. जिसने तुम्हें इतना गर्म कर दिया?’ उसने भी अन्दर झाँका, अन्दर का नज़ारा देख उसके रंग भी उड़ने लगे. ‘ओह माई गॉड.. यकीन ही नहीं हो रहा भाभी.. तो आपका ‘काम’ कैसे करता है?’ मैंने सलवार का नाड़ा बंद किया. उसने मेरी बाजू पकड़ कर अपनी तरफ खींचा, मैं उसके सीने से लग गई- यह क्या कर रहे हो.. कोई देख लेगा…! ‘जब कुछ देखने वाला समय था सो वो तो मैंने देख लिया, अब कौन देखेगा..! जो कुछ मैंने देखा उसका सबूत भी है मेरे पास..!’ मेरे होश उड़ने लगे- कैसा सबूत..? उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पजामे के उभरे हुए हिस्से पर रख दिया. ‘देखा सबूत.. तुमने नाड़ा भी बंद कर लिया लेकिन यह बैठने का नाम नहीं ले रहा..!’ ‘वैसे इतना मैं जानती थी कि तुम मुझे गंदी नज़र से देखते हो, पर मैंने बच्चा समझ कर बात आगे नहीं बढ़ाई..!’ ‘आज यही बच्चा तेरे अन्दर बच्चे का बीज डालेगा..!’ ‘बहुत हरामी हो.. मुन्ना.. चलो ऊपर चलो अपने पोर्शन में..!’
हम दोनों के पास समय ही समय था. दरवाज़ा बंद करते ही उसने मुझे बाँहों में कस कर मेरे रसीले होंठों को जी भर कर चूसा. मैंने उसकी टी-शर्ट उतार दी, हय..चौड़ा सीना.. जिस पर मर्दानगी की निशानी बाल थे..! मेरे पति अपनी छाती एकदम साफ़ रखते हैं. उसने भी मेरी कमीज़ उतार फेंकी. ‘ओह.. मर गया भाभी.. क्या माल हो.. मेरी जान..!’ मेरे मम्मे सच में बहुत आकर्षक हैं, छोटी उम्र से तो लड़के इनके साथ खेलने लगे थे. उसने मेरी ब्रा भी उतार फेंकी. उसने अपना पजामा उतार दिया, फूले हुए अंडरवियर में ही उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया और मेरे ऊपर कूद गया. वो पागलों की तरह मेरे मम्मे चूसने लगा. मैं भी बेकाबू हो रही थी, मेरी वासना जागने लगी, मैंने उसको धकेल दिया और उसके ऊपर बैठ गई. मैंने बैठने से पहले अपनी पैंटी उतार दी. उसकी नज़र मेरी चिकनी फुद्दी पर थी. मैं उसका अंडरवियर उतार कर जोर-जोर से उसके लंड को हिलाने लगी. सच में सांवले रंग का तगड़ा लंड मुझे खुश कर रहा था. मैं नीचे खिसकती हुई गई और उसका लुल्ला मुँह में भर लिया. ऐसे चाटने लगी जैसे कुत्ता, कुतिया की फुद्दी को चाटता है. वो पागल होने लगा, पर मैंने नहीं छोड़ा. मेरी आग देख वो भी दंग रह गया- अह भाभी जी.. मैंने बहुत फुद्दियाँ मारी हैं, लेकिन आप जैसी आग किसी लड़की में अब तक नहीं देखी..! ‘रचित मेरा बस चले तो तुझे पूरा चबा जाऊँ..!’ ‘साली छिनाल.. भाभी चबा लो… साली.. जितनी तेरे अन्दर आग है, तेरा गांडू पति तुझे खुश कर ही नहीं सकता.. उसको औरत कम मर्द ज्यादा पसंद आते होंगे..!’
‘रचित, सच में वो मादरचोद बहुत बड़ा गांडू है कुछ भी नहीं करता साला..!’ ‘जानेमन मैं हूँ तेरा सच्चा आशिक… तेरी फुद्दी का मुरीद हो गया हूँ..!’ ‘मेरे शेर.. अपना जलवा दिखला..!’ ‘ले साली..!’ मैंने टांगें खोलीं और उसके लंड को पकड़ कर फुद्दी के मुँह पर रखा, साथ ही मैंने दोनों हाथों से ऊँगलियों से फुद्दी की फांकें चौड़ी कीं, तब उसने करारा झटका मार दिया. ‘हाय मर गई कमीने.. फट गई मेरी..!’ ‘साली कमीनी.. ले..!’ उसने दूसरा झटका मारा. काफी दिनों बाद बड़ा लंड अन्दर गया था, कुछ दर्द भी हुआ, बाकी बच्चे को उकसाने के लिए मैंने नाटक किया. ‘हाय फट गई मेरी…!’ ‘ले साली..!’ कह उसने पूरा लंड मेरे इमामबाड़े में उतार दिया और लगा झटके लगाने..! ‘हाय.. हाय.. शाबाश मेरे शेर..!’ मैं गाण्ड को उठाने लगी, घुमा-घुमा कर उसका लंड लेने लगी, ‘और तेज़ मार..मेरी..! बेचारा पूरा दम लगाकर मुझे खुश करने पर तुला था. मैंने फुद्दी को सिकोड़ा, वो थोड़ा रुक गया. ‘मार मेरी कमीने.. अपनी रंडी भाभी की फुद्दी मारता रह..!’ ‘साली गश्ती.. कहाँ बेचारा तेरा पति खुश करेगा.. ले..ले..!’ कह कर जोर-जोर से फाड़ने लगा. ‘चल घूम कर घोड़ी बन जा..!’ मैं अभी घूमी ही थी कि उसने फड़ाक से लंड पेल दिया और उसकी जाँघें जब मेरे कूल्हों पर टकराती तो ‘पट..पट’ की अलग सी ध्वनि कमरे में गूँजने लगी. कुछ मेरी मधुर सिसकारियाँ, कुछ उसकी तेज़ सांसों से कमरे को रंगीन बना डाला.
‘हाय.. हाय.. और कर…!’ मैं झड़ने लगी. फुद्दी की गर्मी और ऊपर से मेरे गर्म माल से उसका लुल्ला भी पिघल गया और वो भी झड़ने लगा. उसने एक जोर से झटका लगाया और मेरे ऊपर वजन डाला. मेरे घुटने खिसके और मैं बिस्तर पर उलटी ही गिर गई. उसका लुल्ला मेरे अन्दर था, वो मेरे ऊपर लदा हुआ हाँफ रहा था. ‘वाह रचित तुम तो फाड़ू निकले.. कहाँ इतने दिनों से मैं घर में सागर होते हुए बूँद के लिए तरस रही थी..!’फिर हम कुछ देर फ्रेश हुए और दूसरा राउंड लगाया. रचित और मेरे बीच जिस्मानी सम्बन्ध बन चुके थे. कुछ महीने ऐसा ही चलता रहा, फिर रचित का स्टडी बेस वीसा लग गया और वह चला गया.
2 comments
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